मनुष्य की कारयित्री प्रतिभा (क्रियाशीलता) तथा भावयित्री प्रतिभा (चिन्तनशीलता) को निखारने की सतत् प्रक्रिया ही तपस्या है और यदि तपस्या किसी विशिष्ट तपस्थली में अथवा उसके सामीप्य में हो तो शीघ्र और हितकर फलदायिनी होती है। पावन नैमिषारण्य ऐसी ही विशिष्ट तपस्या-भूमि के रूप में प्रसिद्ध है जो साधना में रत सुपात्रों को अति शीघ्र सिद्धि प्रदान करता है - "तीरथ वर नैमिष विख्याता, अति पुनीत साधक सिधि दाता"। सीतापुर जनपद के इसी पावन तीर्थांचल में स्थित है यह 'राजकीय महाविद्यालय'। यह महाविद्यालय कुचलाई ग्राम के दक्षिण पार्श्व में स्थापित है। लगभग साढ़े चार हजार जनसंख्या का यह ग्राम शिक्षा के केन्द्र (Education Hub) के रूप मे विकसित हो रहा है जहाँ प्राथमिक शिक्षा से लेकर उच्च शिक्षा तक के शिक्षण-संस्थान वर्तमान हैं। कुचलाई ग्राम को अपने नाम में समाहित किए हुए यह महाविद्यालय इस ग्रामीण परिक्षेत्र में उच्च शिक्षा के प्रकाश-स्तम्भ की भाँति अपने उत्तरदायित्वों का निर्वहन कर रहा है।